झिलिमिलाते तारों का देश नेपाल, जहां हर पल एक ख्वाब है, आनंद है, रोमांच है
यात्रा वृतांत- शैलेंद्र तिवारी नेपाल का नाम जेहन में आते ही एक गुदगुदी सी होती है, लगता है कि कुछ अपना सा है, कुछ जाना-पहचाना सा है। जब उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से लगी सीमा पर सोनौली बॉर्डर पार करते हैं तो बिना पासपोर्ट और वीजा के विदेश जाने का भ्रम सा होता है, लेकिन सीमा पार करने के बाद भी अपना होने का अहसास बरकरार रहता है। एक ऐसा देश जिसे अगर झिलिमिलाते तारों का देश कहें तो कुछ गलत नहीं होगा। सांझ होते ही पहाड़ों पर बने घरों के भीतर बिजली के बल्व जब जल उठते हैं तो सड़क से गुजरते समय ऐसा लगता है कि जैसे आसमान के तारे इन पहाड़ों के ऊपर और नीचे खुद उतर आए हैं, अपनी झिलमिल रोशनी से इस देश की रौनक को बढ़ा रहे हैं। जब इस यात्रा पर निकला तो उम्मीद नहीं की थी कि यह शहर इतना खूबसूरत होगा, लेकिन जैसे ही सोनौली बॉर्डर से आगे बढ़ा तो आंखें खुली की खुली रह गईं। महज कुछ किलोमीटर पार करते ही सामने पहाड़ों की पूरी एक शृंखला नजर आ रही थी। हल्की सी चढ़ाई के साथ शुरू हुआ पोखरा की ओर जाने वाली सड़क का सफर। एक ओर आसमान को छूने की जिद करते पहाड़ तो दूसरी ओर पाताल में समा जाने का एहसास दिलाती गहराई। ह
यात्रा वृतांत- शैलेंद्र तिवारी
नेपाल का नाम जेहन में आते ही एक गुदगुदी सी होती है, लगता है कि कुछ अपना सा है, कुछ जाना-पहचाना सा है। जब उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से लगी सीमा पर सोनौली बॉर्डर पार करते हैं तो बिना पासपोर्ट और वीजा के विदेश जाने का भ्रम सा होता है, लेकिन सीमा पार करने के बाद भी अपना होने का अहसास बरकरार रहता है। एक ऐसा देश जिसे अगर झिलिमिलाते तारों का देश कहें तो कुछ गलत नहीं होगा। सांझ होते ही पहाड़ों पर बने घरों के भीतर बिजली के बल्व जब जल उठते हैं तो सड़क से गुजरते समय ऐसा लगता है कि जैसे आसमान के तारे इन पहाड़ों के ऊपर और नीचे खुद उतर आए हैं, अपनी झिलमिल रोशनी से इस देश की रौनक को बढ़ा रहे हैं।
जब इस यात्रा पर निकला तो उम्मीद नहीं की थी कि यह शहर इतना खूबसूरत होगा, लेकिन जैसे ही सोनौली बॉर्डर से आगे बढ़ा तो आंखें खुली की खुली रह गईं। महज कुछ किलोमीटर पार करते ही सामने पहाड़ों की पूरी एक शृंखला नजर आ रही थी। हल्की सी चढ़ाई के साथ शुरू हुआ पोखरा की ओर जाने वाली सड़क का सफर। एक ओर आसमान को छूने की जिद करते पहाड़ तो दूसरी ओर पाताल में समा जाने का एहसास दिलाती गहराई। हर कदम पर एक रोमांच जो आपको प्रकृति और उसके जीवन के करीब लेकर पहुंच जाती है।
बुटवल से पाल्पा होते हुए पोखरा का यह सफर सिद्धार्थ राजमार्ग से होते हुए पूरा होता है। राजमार्ग के दोनों ओर नेपाल के शहर और गांव अपने भीतर प्राकृृतिक संपदा और नेपाली संस्कृति को समेटे हुए हैं। 188 किलोमीटर का यह सफर पूरा करने में करीब सात घंटे तक का समय लगा और करीब आधी रात को शहर के भीतर प्रवेश किया। शहर की सीमा के बाहर नेपाल पुलिस के सशस्त्र जवान इंतजार करते मिले। अनुमति और दूसरी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद आगे जाने का इशारा किया।
पोखरा ऐसा शहर है जहां देर रात अगर खाने की गुंजाइश तलाशी जाए तो मुश्किल है। हालांकि शुक्रवार और शनिवार की रात यहां के कुछ बाजार नो-व्हीकल जोन में तब्दील हो जाते हैं और देर रात दो बजे तक खुले रहते हैं। यह अपने आप में सुखद अहसास कराने वाले होते हैं। जहां आप लाइव संगीत का आनंद ले सकते हैं। इसके अलावा आप तरह-तरह के भारतीय व्यंजनों के साथ नेपाली स्वाद को भी चख सकते हैं। शहर में आने के बाद ऐसा लगता है कि जैसे प्रकृति ने स्वयं अपनी गोद में इस शहर को बसाया है। चारों ओर से पहाड़ और उसके बीच में बचे इस छोटे से प्राकृतिक शहर की तस्वीर को शब्दों में बयां कर पाना भी मुश्किल है।
शहर में बने छोटे-छोटे होटल यहां आने वाले पर्यटकों को नेपाली संस्कृति का एहसास कराते हैं। हर दूसरा घर ही एक होटल जैसा है, जहां घर की महिलाएं ही मुख्य भूमिका में नजर आएंगी। इस शहर की सबसे बड़ी खासियत भी यही है कि यहां के कारोबार पर महिलाओं का कब्जा है। पुरुष यहां पर महिलाओं के पीछे ही नजर आते हैं...दुकान, होटल से लेकर हर जगह तक महिलाओं की भूमिका प्रभावी है।
दूसरे दिन की सुबह अगर मौसम साफ है तो यह आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं है। आपको अपने होटल के कमरे से हिमालय की पर्वत शृंखलाओं की चोटी माचापुच्छरे को साफ देख सकते हैं। यह आपके रोमांच को बढ़ाने के लिए काफी होगी। उसके बाद सफर की शुरुआत के लिए जरूरी है कि लोकल गाड़ी और ड्राइवर लिया जाए, जिससे शहर के बारे में ज्यादा बेहतर तरीके से भी जाना जा सकता है।
कुल मिलाकर सफर के दौरान एक बात का एहसास जरूर हो जाता है कि नेपाल भले ही पिछड़ा या गरीब देश कहा जाता हो लेकिन लोगों की व्यवहारिक जरूरतों को पूरा करने में यहां की सरकार जरूर प्रमुखता से काम कर रही है। जिस तरह से पहाड़ों के ऊपर बिजली और पानी पहुंचाने का काम किया है, यह वाकई में प्रशंसनीय है। हिंदुस्तान जैसे देश में जहां प्रचुर मात्रा में बिजली की उपलब्धता है, फिर भी कई गांव अब भी बिना बिजली के जी रहे हैं।
फेवा ताल/बरही मंदिर
इस शहर की शुरुआत पर्यटकों की तरह ही फेवा ताल से ही होती है। पहाड़ों की गोद में बना ताल अपने किनारों पर समुद्र के बीच जैसा आनंद देता है। इसी ताल में बने छोटे से द्वीप पर बना हुआ है बरही मंदिर। कहा जाता है कि यह मंदिर आदि शक्ति दुर्गा का है, जिन्होंने यहां पर राक्षसों से देवों की रक्षा की थी। इस मंदिर का यहां पर बड़ा ही महत्व है। तालाब के बीचों-बीच बने इस मंदिर तक आने के लिए किनारे पर नावों का इंतजाम होता है और सौ नेपाली रुपए में यह आपको यहां तक लेकर आते हैं।
विंध्यवासिनी मंदिर
यहां करीब दो घंटे का वक्त बिताने के बाद अगला पड़ाव विंध्यवासिनी मंदिर मिला, जो यहां के प्रमुख मंदिरों में शामिल है। कहा जाता है कि नेपाल के तत्कालीन राजा सिद्धी नारायण शाह मिर्जापुर से इन देवी को नेपाल लेकर गए थे और पोखरा में मंदिर बनाकर इनकी स्थापना की थी। यह मंदिर भी एक ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है। मंदिर पर पहुंचकर हिंदू मंदिरों की भव्यता का एहसास किया जा सकता है। मंदिर में एक साथ दिए जलाने के लिए पीतल के दियों की एक लंबी कतार है, जो आपके भीतर एक शक्ति का संचार करती है। तो वहीं, पुरानी चौघट पर टंगे घण्टे आपको रोमांचित करते हैं।
गुफाएं/झरने
मंदिर से महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर गुप्तेश्वर महादेव गुफा के साथ-साथ महेंद्र गुफा है, जो आपको जमीन के भीतर की पुरानी दुनिया से अवगत कराती हैं। बताती है कि एक जीवन और एक संस्कृति इन गुफाओं में किस तरह से रही होगी। तो वहीं सेति गंडकी नदी भी इस शहर के सौंदर्य को नया रूप देती हैं। जो गुफा जाने के रास्ते में ही मिलती है। सेति नदी को यहां पर वैसे ही पूजा जाता है, जैसे हिंदुस्तान में गंगा को। इस नदी की संस्कृति ठीक वैसी ही है जैसी कि नर्मदा की है। नर्मदा के पत्थरों को शिवलिंग के रूप में स्थापित किया जाता है, जबकि इस नदी के पत्थरों से भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम मिलते हैं। शहर के बीचों-बीच बना डेविड फॉल भी देखा जा सकता है। लोगों का कहना था कि किसी डेविड ने इसकी खोज आत्महत्या करके की थी। लेकिन डेविड के जाने के बाद आज यह महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल के रूप में स्थापित है। यहां पर बना छोटा सा बाजार भी आपको आकर्षित करेगा।
सारंगकोट
गुफा, नदी और झरने देखने के बाद भी मन कुछ और ज्यादा पाने को बेताव हो जाता है। ऐसे में सबसे बेहतरीन जगह पहुंचे सारंगकोट। १६०० मीटर ऊंचाई से शहर और अन्नपूर्णा रेंज की पहाडिय़ों को देखना वाकई आनंदित करने वाला होता है। वैसे तो यहां से सूर्य का उदय देखा जाता है। लेकिन दिन भर में कभी भी यहां पर आकर यहां की ठंडी हवा को महसूस किया जा सकता है। यहां का तापमान पोखरा से दो से तीन डिग्री कम रहता है। हालांकि यहां पर आने के लिए आपको थोड़ी सी सीढिय़ां भी चढऩी पड़ेंगी, हालांकि यह ज्यादा नहीं हैं।
लेकिन ज्यादा उम्र के लोगों के लिए थोड़ा मुश्किल हैं। फिर भी यहां तक गाड़ी से भी आने का अपना रोमांच है। यहां से ही कुछ दूरी पर आनंद हिल की 1100 मीटर की ऊंचाई पर बने शांति स्तूफ को भी देखा जाना चाहिए। यहां से अन्नपूर्णा रेंज की पहाडिय़ों का पैनोरेमिक व्यू भी शानदार होता है। वहीं फेवा ताल और शहर भी आकर्षित लगते हैं। एडवेंचर स्पोट्र्स का आनंद लेने के लिए सारंगकोट सबसे बेहतरीन जगह है।
मुक्तिनाथ/अन्नपूर्णा सर्किट
अगर आपके पास वक्त है तो यहां से मुक्तिनाथ भी जाया जा सकता है। नेपाल में कहा जाता है कि चार धाम में मुक्तिनाथ, पशुपतिनाथ और केदारनाथ-बद्रीनाथ धाम हैं। मुक्तिनाथ अन्नपूर्णा सर्किट के करीब है। पोखरा से यहां आने में सात से आठ घंटे का वक्त लगता है। लेकिन यहां से अन्नपूर्णा की बर्फीली पहाडिय़ों की ओर जाया जा सकता है। ट्रेकिंग का आनंद लेने वाले लोग यहां से आगे जाते हैं, जबकि बाकी लोग बर्फ देखकर यहीं से लौट जाते हैं। यहां आने वाले लोगों को एक दिन आने में और एक दिन जाने में जाया होता है, जबकि एक दिन का समय यहां रुककर बिताना ज्यादा सुकूनदेह होता है।
काठमांडू
कुछ दिन पोखरा में बिताने के बाद सीधे कार को काठमांडू की ओर मोड़ दिया। सुबह आठ बजे सफर की शुरुआत हुई। रात में हुई हल्की बारिश का एहसास अभी भी दिखाई दे रहा है। पहाड़ बादलों के भीतर असलाए हुए हैं। ऐसा लग रहा है कि जैसे पहाड़ भी रजाई ओढ़कर अलसाए हुए हैं। रास्ता पिछले रास्ते से आसान है। सड़कें कम घुमावदार हैं और चढ़ाई भी शुुरुआती सफर में नजर नहीं आ रही है। लेकिन चारों तरफ पहाड़ जरूर सफर को मजेदार बना रहे हैं। कैमरे और आंखों के बीच में जिद है कि कौन बेहतरीन पलों को अपने भीतर कैद कर ले। सफर में साथ-साथ चलती मर्सयांग्दी नदी आनंदित करती है।
वहीं, कुछ दूरी पर जाने के बाद नदी के बहाव को पलटते देखना भी एक अलग ही अनुभव होता है। नदी के किनारों पर वाटर स्पोट्र्स के कई सेंटर नजर आए, जहां युवाओं की उत्साही टोली पानी की धार में जूझ रही थी। आगे मनकामना देवी का मंदिर १३०२ मीटर की ऊंचाई पर बना हुआ है। हालांकि यहां तक पहुंचने के लिए रोप-वे (नेपाली इसे केवल कार भी कहते हैं) से जाना ही विकल्प है। मेरे लिए यह अब तक का सबसे बड़ा रोप-वे सफर था, जिसका रोमांच शब्दों में नहीं बयां किया जा सकता है।
यह वह अनुभव था, जिसे सिर्फ महसूस ही किया जा सकता है। यहां से आगे बादलों के भीतर धंसे हुए पहाड़ नजर आ रहे हैं और इसके साथ ही सड़क घुमावदार हो गई है। एहसास होने लगा है कि हम काठमांडु के करीब आ गए हैं। ये घुमावदार सड़क काठमांडु में जाकर ही ठहरती है। हालांकि यहां आने के लिए पोखरा से सीधे विमान सेवा भी उपलब्ध है, जो हर आधे घंटे में उड़ान भरती है। तकरीबन आधे घंटे के सफर में आप काठमांडू पहुंच सकते हैं। जबकि सड़क मार्ग से यह वक्त छह से सात घंटे का भी हो सकता है।
श्री पशुपतिनाथ
काठमांडु आकर सबसे पहले त्रिभुवन एयरपोर्ट के सामने एक होटल में नेपाली खाने का आनंद लिया और उसके बाद यहां के सबसे प्रमुख आकर्षण बाबा श्री पशुपतिनाथ के दर्शन करने रवाना हो गए। एयरपोर्ट से महज डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर बाबा का दरबार है, जिसका एहसास सड़क से ही हो जाता है। ठेठ नेपाली आर्किटेक्ट में बना यह मंदिर आज भी अपनी वास्तुकला को बचाने में कामयाब है। यह मंदिर हिंदुओं की आस्था का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र है। यहां पर भारत से सबसे ज्यादा पर्यटक पहुंचते हैं। चार मुखों में यहां पर भगवान शिव विराजे हुए हैं और मंदिर के ठीक पीछे बागमती नदी बह रही है, जिसे यहां पर बनारस की गंगा जैसा आध्यात्मिक संस्कार मिलता है। यहां पर भी गंगा की तर्ज पर बागमती नदी की आरती होती है और मंदिर के ठीक पीछे घाटों पर विश्राम घाट भी बने हुए हैं। मान्यता है कि यहां पर अंतिम संस्कार करने से आत्मा का परमात्मा से मिलन हो जाता है। मंदिर की संस्कृति आपको आकर्षित करेगी, यहां पर आमतौर पर हिंदू मंदिरों में नजर आने वाले पंडे-पुजारियों की भीड़ नहीं होगी। न ही मंदिर के भीतर प्रसाद और फूल माला की ज्यादा दुकानें नजर आएंगी। शिव का स्वरूप ही यहां पर सबसे बड़ा आनंद है।
बौद्धनाथ/स्वयंभूनाथ
शिव से आत्मसात होने के बाद यहां पर बुद्ध भी अपनी संस्कृति को समेटकर बैठे हैं। बौद्धनाथ और स्वयंभूनाथ दोनों ही स्तूप बौद्ध धर्म को मानने वालों का सबसे बड़ा केंद्र है। काठमांडु के पूर्व में बना बौद्धनाथ स्तूप दुनिया के सबसे बड़े स्तूपों में शामिल है। जबकि स्वयंभूनाथ स्तूप की अपनी आस्था है। स्वयंभूनाथ के बारे में कहा जाता है कि इस स्तूप के चारों ओर बनी आंखें भगवान बुद्ध की मानी जाती हैं जो चारों ओर देख रही हैं और लोगों के कल्याण के लिए रास्ता दिखा रही हैं। स्वयंभूपुराण में इस जगह को लेकर कई तथ्य बताए गए हैं।
थमेल
नेपाली संस्कृति, आर्किटेक्ट दरबार चौराहा पर नजर आ रहा था। लेकिन असली नेपाल देखने के लिए थमेल पहुंचना जरूरी था। वहां पहुंचकर आनंद भी आया। जाना कि आखिर कैसे आज भी पुराना काठमांडु थमेल में जीवित है। थमेल भी ऐसी ही जगह है जहां पर आपको पुराना नेपाली शहर नजर आएगा। इसकी खूबसूरती आपको आनंदित कर देगी।
यहां की दुकानों में आपको नेपाली संस्कृति को समेटे हुआ सामान नजर आएगा। यहां के गर्म कपड़े और कढ़ाईदार सामान आकर्षित करेंगे। तो कुल मिलाकर आपको नेपाल का यह सफर आनंद से भर देगा। काठमांडु से भारत वापसी के लिए सड़क मार्ग के जरिए वापस सोनौली बॉर्डर आया जा सकता है या फिर बिहार के रक्सौल बॉर्डर के जरिए भी वापसी की जा सकती है। इसके अलावा सीधे हवाई मार्ग से वापसी के लिए त्रिभुवन एयरपोर्ट हमेशा तैयार है।
क्या करें-
- नेपाल की यात्रा के दौरान कुछ चीजों का हमेशा ध्यान रखें कि अगर आप सड़क मार्ग से सफर कर रहे हैं तो रास्ते में जाम की संभावना बनी रहती है। ऐसे में आपकी गाड़ी के भीतर हमेशा खाने का सामान और पर्याप्त मात्रा में पानी जरूर होना चाहिए।
- यहां की सबसे खूबसूरत अगर कोई याद आपके साथ आएगी तो यह पूरा देश ही मोबाइल वाई-फाई नजर आता है। यहां की बसों से लेकर ढाबों और रेस्टोरेंट पर आपको फ्री वाई-फाई की सुविधा का बोर्ड जरूर नजर आएगा।
- नेपाल बॉर्डर पर अगर आप अपनी गाड़ी के साथ जा रहे हैं तो बॉर्डर पर बने चेकपोस्ट पर अपनी गाड़ी की एंट्री के साथ टैक्स जमा कराने की प्रक्रिया जरूर पूरी कर लें। बेहतर हो कि वहां पर मौजूद एजेंट का सहारा ले लें, जिससे आपका काम जल्दी हो जाएगा। फिर भी आप इसके लिए एक घंटे का समय मानकर चलें। टैक्स तय समय से एक या दो दिन ज्यादा का लें तो बेहतर रहेगा। कई बार जाम में गाड़ी फंसने पर आप परेशानी में नहीं आएंगे, क्योंकि अगर आपका टैक्स समय खत्म होने के बाद आप पकड़े जाते हैं तो नेपाल पुलिस आप पर भारी जुर्माना कर सकती है।
- यहां पर भारतीय करेंसी स्वीकार है, लेकिन फिर भी बेहतर होगा कि आप अपने साथ नेपाली करेंसी भी लेकर चलें। यह आप बॉर्डर पर भी एक्सचेंज कर सकते हैं। इसके अलावा स्थानीय दुकानदार/होटल संचालक भी करेंसी एक्सचेंज कर देते हैं।
- खरीददारी करते समय जरूर पूछें कि आपको भाव नेपाली करेंसी में बताए जा रहे हैं या भारतीय करेंसी में। वैसे, पूरे नेपाल में मोलभाव होता है, ऐसे में आप मोलभाव भी कर सकते हैं।
- अगर सड़क मार्ग से सफर कर रहे हैं तो बेहतर होगा ज्यादा रात होने के बाद सुरक्षित जगह पर सफर को रोक दें। यह आपके लिए सुरक्षित रहेगा।